ऑनलाइन चर्च के नुकसान : Side Effects Of Online Church

ऑनलाइन चर्च के नुकसान What are the side effects of Online Church?

जब से कोविड-19 के वजह से देश में तालाबंदी हुआ है तब से ऑनलाइन चर्च या संगति काफी जोर-शोर से हो रहा है। अधिकांश लोग ज़ूम और गूगल मीट के माध्यम से ऑनलाइन संगति करते हैं। आप भी कहीं न कहीं किसी ऑनलाइन चर्च से जुड़े होंगे। या फिर किसी साप्ताहिक बाईबल अध्ययन से जुड़े हुए होंगे।

मैंने कई लोगों से ऑनलाइन चर्च के बारे में उनका विचार पूछा। अधिकांश लोगों के कहा- “इसमें वो बात नहीं हैं जो साथ मिलकर आराधना करने में है।“ मुझे आप से एक सवाल पूछने दीजिए। क्या सच में आप ऑनलाइन चर्च का आनंद वैसे ही उठा पा रहे हो जैसे पहले सब साथ मिलकर परमेश्वर की आराधना करने और वचन सुनने में महसूस करते थे? ऑनलाइन चर्च के अपने कई लाभ हैं तो साथ ही इसके कई नुकसान भी हैं। तो आखिर क्या-क्या नुकसान ऑनलाइन चर्च के हैं? आइये हम जानते हैं-

13 नुकसान ऑनलाईन चर्च का

  • साथ में आराधना नहीं कर पाते हैं।
  • गर्मजोशी मसीही संगति का एहसास की कमी होने लगा है।
  • नेटवर्क खराब रहने से ठीक से सुनाई नहीं देता है।
  • दान-दसमांस की कम हो गया है और कलिसिया में आर्थिक तंगी होने लगी है।
  • विश्वासी लोगों में तनाव आ गया है।
  • संदेश पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होने लगी है।
  • प्रचारक या पास्टर का लोगों के साथ जुड़ाव की कमी हो गई है।
  • विश्वासी लोग ऑनलाईन एक दूसरे को उत्साहित नहीं कर पाते हैं।
  • विश्वासियों का एक दूसरे के साथ व्यक्तिगत लगाव में कमी आने लगी है।
  • कोई ठीक से संदेश सुन रहा है या नहीं – कुछ भी पता नहीं चलता है।
  • कुछ विश्वासी घर का काम करते हुए ऑनलाईन चर्च में शामिल होते हैं।
  • जो चर्च ऑनलाईन आराधना का संचालन नहीं कर पा रहे हैं उनके विश्वासी चर्च छोड़ रहे हैं।
  • चर्च खुलने के बाद बहुत लोग चर्च जाने के लिए आलसी बन जाएंगे।

समाधान हेतु कुछ सुझाव

दोस्तों! ऑनलाईन चर्च के कई लाभ हैं लेकिन हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि इसके नुकसान भी हैं। मेरी आप सब से गुज़ारिश है कि यह बात अपने पास्टर और विश्वासियों को बताए और उनको सावधान करें। देश से तालाबंदी हटने के बाद हमें एकजुट होकर इन नुकसान से भरपाई के लिए क्रियाशील होकर मेहनत करना पड़ेगा। तालाबंदी हटने के बाद आप सब अगुवे मिलकर उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर कलिसिया का मूल्यांकन करे। फिर जैसा उचित लगे उसके अनुसार योजना बना कर कलिसिया में सुधार के कार्य में जुट जाये।

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